Sunday, April 3, 2011

परमेश्वर के गुणों में भी साझीदार बनाना ‘बड़ा जु़ल्म‘ है । The Way to God .



परमेश्वर के सिवा किसी और की भक्ति-वन्दना करना तो दरकिनार , किसी को उसके गुणों में भी साझीदार बनाना ‘बड़ा जु़ल्म‘ है ।

( पवित्र कुरआन , 31, 13 )
 
जुल्म का वास्तविक अर्थ है , किसी चीज़ को उसकी असली और सही जगह के बजाय दूसरी जगह पर रखना । शिर्क यानि किसी को ईश्वर का साझीदार ठहराना इसीलिये जुल्म है कि बहुदेववादी भक्ति-वन्दना किसी अन्य की करता है जबकि इसका वास्तविक अधिकारी केवल परमेश्वर है । पवित्र कुरआन में जिन्न अर्थात अदृश्य जीवों और इनसानों की रचना का मक़सद और उनके जीवन का उद्देश्य ही यह बताया गया है कि वे परमेश्वर की भक्ति करने वाले नेक बन्दे बनें -
वमा ख़लक़तुल जिन्ना वल इन्सा इल्ला लिया‘अबुदून । ( पवित्र कुरआन , 51, 56 )
अर्थात हमने तो जिन्नों और इनसानों को केवल इसलिए पैदा किया कि वे मेरी बन्दगी करें यानि आज्ञापालन करें ।
जब पैदाइश की बुनियादी वजह यह ठहरी कि , तो यह कैसे सम्भव है कि उस दयालु पालनहार ने अपने बन्दों के लिए कोई रास्ता न बताया हो , और न ही कोई उस रास्ते का बताने वाला पैदा किया हो ?
इन दोनों में से पहले सवाल का जवाब तो यह है -

इन्नद्-दीन इन्दल्लाहिल-इस्लाम ।  ( पवित्र कुरआन , 3 , 19 )
अर्थात हम तक पहुंचने का रास्ता इस्लाम है ।
यहां इस्लाम से तात्पर्य वह धर्म नहीं , जो आज समाज में इस्लाम कहलाता है बल्कि यह कहा गया है कि वह धर्म यानि मार्ग जो इनसान को परमेश्वर तक पहुंचाता है ,उसका नाम ‘इस्लाम‘ है । दूसरे लफ़्ज़ों में , वे सारे धर्म जो समय समय पर परमेश्वर की ओर से अवतरित हुए , उनमें से हरेक का नाम ‘इस्लाम‘ था ।
लेखक : मालिक रामपुस्तक : इस्लामियात ( उर्दू ) पृष्ठ 16 का हिन्दी अनुवाद
प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड , नई दिल्ली
जो आदमी जानना चाहे कि मालिक राम कौन थे ?
वह इस पते पर ईमेल करके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब से पूछ सकता है ।
आप यहां से पवित्र कुरआन व अन्य सार्थक साहित्य मुफ्त या क़ीमत देकर मंगा सकते हैं:  info@cpsglobal.org
Please go to 

5 comments:

shyam gupta said...

एक मूल ते सब जग उपजा....जीव ब्रह्म ना परै....कण कण में भगवान----भारतीय दर्शन-धर्म का तो मूल ही यह है कि ईश्वर और बन्दे में कोई अन्तर नहीं --तो बन्दे को पूजो या भजो उस ईशवर को--एक ही बात है, इसीलिये शायर ने कहा--
"घर से मन्दिर है बहुत दूर चलो ये करलें।
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये ॥
---अब यहां न शिर्क है न ज़ुल्म--बस धर्म ही धर्म...विश्वास ही विश्वास...आनन्द ही आनन्द है...न ईश्वर अपने पास बुलाता न ईश्वर या उसके गुण किसी के साझीदार ...सब तू ही तू...

DR. ANWER JAMAL said...

शायरों की आपने भली कही, शायर तो हर तरह के होते हैं। कोई भी शायर कुछ भी कह सकता है। यही हाल दार्शनिकों का है। दार्शनिकों में भी सही और ग़लत हर तरह के दार्शनिक होते हैं। सत्य का जानने वाला केवल एक परमेश्वर है। सत्य का बोध कराने के लिए वह अपनी वाणी का अवतरण करता है। उसकी वाणी में कहीं नहीं लिखा है कि मालिक और बंदे में कोई भेद नहीं है। उसकी वाणी में कहीं नहीं लिखा है कि चाहे मालिक को पूजो या चाहे बंदे को पूज लो, दोनों की पूजा एक ही बात है। इसके विपरीत उसने संभूति और अंसभूति की पूजा करने वालों को अंधकार में प्रवेश करने वाला बताया है।
देखें यजुर्वेद 40, 9

तौहीद और शिर्क लेखक - मौलाना क़ारी तय्यब साहब

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

Shalini kaushik said...

यहां इस्लाम से तात्पर्य वह धर्म नहीं , जो आज समाज में इस्लाम कहलाता है बल्कि यह कहा गया है कि वह धर्म यानि मार्ग जो इनसान को परमेश्वर तक पहुंचाता है ,उसका नाम ‘इस्लाम‘ है
pavitr kuran ki ye panktiyan samast sansar ke liye sahejne yogya hain.

शिखा कौशिक said...

gyan chakshu khule ho to sab samjh me aa jata hai .sarthak post .aabhar